‘ निर्मला ‘ मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित उपन्यास का सारांश।

लेखक का नाम – मुंशी प्रेमचंद

पृष्ठ – 184

उपन्यास का नाम – निर्मला

निर्मला, मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित एक प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। जिसका प्रकाशन सन 1927 में हुआ था। इस उपन्यास का लेखन सन 1926 के समय की एक कुप्रथा “दहेज प्रथा” और अनमेल विवाह को आधार बना कर प्रारम्भ हुआ था। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका “चाँद” में यह उपन्यास नवम्बर 1925 से दिसम्बर 1926 तक विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। 

 

दहेज देने की क्षमता न होने के कारण निर्मला का विवाह एक अधेड़ पुरुष के साथ कर दिया जाता है जिसके पहले से 3 लड़के थे और उनकी पहली पत्नी की मौत हो चुकी होती है ! निर्मला चरित्र की पवित्र होने के बावजूद भी उसे समाज और अपने पति की गलत नजरो का शिकार होना पड़ता है ! इससे उन्हें समाज में अनादर का सामना करना पड़ता है ! इस प्रकार निर्मला विभिन्न परिस्थितियों को सहती हुई अंत में मृत्यु को प्राप्त होती है !

निर्मला उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद ने दहेज़ प्रथा और अनमेल विवाह का मार्मिक चित्रण किया है ! इस उपन्यास में बिना सहमती के विवाह और दहेज़ के कारण होने वाले दुष्प्रभावो का सटीकता से वर्णन किया गया है ! साथ ही एक नारी की सहिष्णुता का भी बखूबी वर्णन किया गया है ! एक नारी ही है जो तमाम बुराइयों और विपरीत परिस्थितियों का बखूबी सामना कर सकती है !

अगर हम आज के भारतीय समाज की बात करे तो कई निर्मला ऐसी मिल जाएगी जिन्हें समाज में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है ! कई महिलाये अनमेल विवाह और दहेज़ के कारण मौत का शिकार हो जाती है !

मुंशी प्रेमचंद के इस उपन्यास को महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में विशेष स्थान का दर्जा प्राप्त है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र ‘निर्मला’ नाम की 15 वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से करा दिया जाता है, जिसके पहली पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता पर सन्देह किया जाता है, समाज की विषैली मानसिकता और परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुए मृत्यु को प्राप्त करती है।

निर्मला में अनमेल विवाह यानि कि बेजोड़ संबंध और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी को प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को समाज के सामने लाना और खुले तौर पर इसका विरोध करना है। मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय स्तिथि का चित्रण किया गया है। उपन्यास के अंत में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है।

निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है, जिस कारण यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य या महत्व यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे न केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि यह प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है।

निर्मला – मुंशी जी ( तोताराम ) की पत्नी

मंसाराम – मुंशी जी का बड़ा बेटा

जियाराम , सियाराम – मुंशी जी के छोटे बेटे

रुक्मणि – मुंशी जी की विधवा बहन

कृष्णा – निर्मला की बहन

प्रेमचंद जी ने निर्मला उपन्यास की भाषा को काफी सरल और समझने योग्य बनाया है ! इस उपन्यास में निर्मला को मुख्या पात्र बनाया गया है ! यह उपन्यास महिलाओ के संघर्ष और सहिष्णुता को दिखाता है ! कैसे एक महिला चरित्रवान होते हुए भी उसे समाज की गलत निगाहों का सामना करना पड़ता है ! इस उपन्यास में कई किरदारों की मौत हो जाती है ! निर्मला को भी विभिन्न दुखो का सामना करना पड़ता है , इसके बावजूद भी वह हिम्मत नहीं हारती है और परेशानियों का डटकर सामना करती है !

एक दिन ऐसा आता है जब वह हालातो का सामना करते – करते इस दुनियां को सदा के लिए अलविदा कह जाती है ! दोस्तों प्रेमचंद जी का यह उपन्यास एक नारी की सहिष्णुता को दिखाता है ! अगर आप नारी की सहिष्णुता और सहनशीलता को जानना और समझना चाहते है तो निर्मल उपन्यास को एक बार अवश्य पढ़े !

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