
9रात्रि, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे पूरे भारत में बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 2024 में नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से होगी, और दूसरे दिन, जो 4 अक्टूबर 2024 को है, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा रूप हैं और उन्हें तपस्या और संयम की देवी माना जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा
माँ ब्रह्मचारिणी का जन्म हिमालयराज के घर हुआ था और उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ ब्रह्मचारिणी ने हजारों वर्षों तक केवल फूलों और फलों का सेवन किया और फिर सौ वर्षों तक केवल हरी सब्जियों का सेवन किया। इसके बाद, उन्होंने तीन हजार वर्षों तक बिल्व पत्र के टूटे हुए पत्तों का सेवन किया और अंततः बिना भोजन और पानी के तपस्या की।
उनकी कठोर तपस्या से सभी देवता और ऋषि-मुनि प्रभावित हुए और उन्होंने माँ ब्रह्मचारिणी को आशीर्वाद दिया कि उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी और वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करेंगी। माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या और भक्ति का यह उदाहरण हमें सिखाता है कि दृढ़ संकल्प और समर्पण से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रतीकात्मकता और चित्रण
माँ ब्रह्मचारिणी को एक सफेद साड़ी पहने हुए चित्रित किया जाता है, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल होता है। वे नंगे पांव चलती हैं, जो उनकी तपस्या और संयम का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी को शांति, पवित्रता और ज्ञान की देवी माना जाता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है। उनके चेहरे पर एक दिव्य आभा होती है, जो उनकी तपस्या और भक्ति का प्रतीक है। उनके जप माला और कमंडल का महत्व यह है कि वे ध्यान और साधना की प्रतीक हैं, जो आत्म-संयम और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाती हैं।
पूजा विधि
दूसरे दिन की पूजा में माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। पूजा में फूल, फल, और मिठाई अर्पित की जाती है, साथ ही मंत्रों का जाप और प्रार्थनाएं की जाती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी को चीनी और मिश्री का भोग लगाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे भक्तों को दीर्घायु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
पूजा की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जिसमें एक कलश को पानी से भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है। यह कलश देवी की उपस्थिति का प्रतीक होता है। इसके बाद, माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाया जाता है और धूप-दीप से उनकी आरती की जाती है। भक्तजन माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों को ज्ञान, शांति और आत्म-संयम की प्राप्ति होती है। वे स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra) से जुड़ी होती हैं, जो रचनात्मकता और भावनात्मक संतुलन का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से भक्तों को मानसिक शक्ति और आत्म-नियंत्रण प्राप्त होता है, जिससे वे जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को यह सीख मिलती है कि जीवन में संयम और तपस्या का कितना महत्व है। उनकी कथा हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और संयम बनाए रखना चाहिए। माँ ब्रह्मचारिणी की भक्ति और तपस्या का यह उदाहरण हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में भी आत्म-संयम और धैर्य का पालन करें।
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