
कोलकाता की ट्राम सेवा का इतिहास बहुत ही समृद्ध और दिलचस्प है। यह सेवा न केवल कोलकाता की पहचान का हिस्सा है, बल्कि यह शहर के परिवहन के विकास की कहानी भी बताती है।
प्रारंभिक दौर
कोलकाता में ट्राम सेवा की शुरुआत ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1873 में की गई थी। पहली ट्राम सेवा सीलदह से आर्मेनियन घाट स्ट्रीट के बीच शुरू हुई थी, जो 2.4 किलोमीटर की दूरी तय करती थी। प्रारंभ में, ये ट्राम घोड़ों द्वारा खींची जाती थीं।
विद्युत ट्राम का आगमन
1880 में, कलकत्ता ट्रामवेज कंपनी का गठन हुआ और इसे लंदन में पंजीकृत किया गया। 1902 में, एशिया की पहली विद्युत ट्रामकार ने एस्प्लानेड से किडरपोर के बीच चलना शुरू किया। यह परिवर्तन तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण था और इससे शहर में ट्राम नेटवर्क का विस्तार हुआ।
स्वर्णिम युग
20वीं सदी के प्रारंभ में, ट्राम नेटवर्क ने शहर के बड़े हिस्से को कवर किया। 1920 के दशक तक, नेटवर्क 36 किलोमीटर तक फैल चुका था। ट्राम न केवल दैनिक आवागमन के लिए बल्कि मनोरंजन के लिए भी महत्वपूर्ण थीं, जो शहर के सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती थीं।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ट्राम सेवा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार के दौरान, ट्रामों का भी बहिष्कार किया गया, जिससे उनके व्यवसाय पर गहरा प्रभाव पड़ा।
स्वतंत्रता के बाद का दौर
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, ट्राम सेवा ने फिर से लोकप्रियता हासिल की और यह सार्वजनिक परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन बनी रही। हालांकि, बसों और मेट्रो रेल के आगमन के साथ, ट्रामों का उपयोग धीरे-धीरे कम होने लगा।
आधुनिक चुनौतियाँ और गिरावट
1980 के दशक तक, ट्राम नेटवर्क काफी सिकुड़ गया था। सेवा को आधुनिक बनाने और बनाए रखने के प्रयासों के बावजूद, ट्राम नेटवर्क को बढ़ते यातायात और अन्य परिवहन साधनों से प्रतिस्पर्धा के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
हाल के विकास
हाल के वर्षों में, ट्राम सेवा में और गिरावट आई है। पश्चिम बंगाल सरकार ने अधिकांश ट्राम मार्गों को बंद करने की घोषणा की, केवल मैदान और एस्प्लानेड के बीच एक धरोहर मार्ग को छोड़कर। यह निर्णय कोलकाता की प्रतिष्ठित ट्रामों के एक युग के अंत को दर्शाता है, जो 150 वर्षों से अधिक समय से शहर की पहचान का हिस्सा रही हैं।
कोलकाता की ट्रामें न केवल परिवहन का साधन हैं, बल्कि शहर की समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी हैं। उन्होंने ब्रिटिश काल से लेकर आधुनिक कोलकाता तक के शहर के परिवर्तन को देखा है, और उनके साथ अतीत, वर्तमान और भविष्य की कहानियाँ जुड़ी हुई हैं।
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