अब सुप्रीम कोर्ट के जज ही बोले- ‘कानून की पढ़ाई में शामिल हों गीता-वेद-पुराण’

सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मिथल ने कहा कि वेद, स्मृतियां, अर्थशास्त्र, मनुस्मृति और रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्य केवल सांस्कृतिक धरोहर नहीं हैं, ये न्याय, समानता, शासन, दंड और नैतिक कर्तव्य की ‘गहरी समझ’ प्रदान करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मिथल ने वेद, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के विधि दर्शन (Legal Philosophy) को विधि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि वेद, स्मृतियां, अर्थशास्त्र, मनुस्मृति और रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्य केवल सांस्कृतिक धरोहर नहीं हैं, ये न्याय, समानता, शासन, दंड और नैतिक कर्तव्य की ‘गहरी समझ’ प्रदान करते हैं।

जस्टिस पंकज मिथल 12 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के 75 साल पूरे होने पर भोपाल स्थित नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (NLIU) पहुंचे थे. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “देश की न्यायिक प्रणाली को भारतीय बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इसमें सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का अनुवाद करके उन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जा रहा है. इस प्रयास के तहत भारत के पिछले CJI डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में न्याय की देवी की एक नई प्रतिमा का अनावरण किया गया. इस प्रतिमा में वह साड़ी पहने हुई है. तलवार की जगह किताब पकड़े हुए है. और उसकी आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है.”

न्यायाधीश पंकज मिथल ने आगे कहा कि लॉ पाठ्यक्रमों में चार किताबें होनी चाहिए. संविधान के साथ-साथ गीता, वेद और पुराण पढ़ाए जाने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा, “इनसे सीखते हुए हमारी न्याय व्यवस्था को काम करना चाहिए. तभी हम देश के प्रत्येक नागरिक को न्याय प्रदान करने में सक्षम होंगे.” जस्टिस मिथल ने ये भी कहा, “पूरी दुनिया बढ़ती असमानता, तेजी से तकनीकी परिवर्तन और विकासशील ध्रुवीकरण का सामना कर रही है. इसके बावजूद न्यायालय कानून के शासन को कायम रखते हुए एक स्थिर संस्था के रूप में खड़ा रहा है.”

उन्होंने अपने सुझावों के समर्थन में दलील दी, “भारतीय न्याय की कहानी 1950 में शुरू नहीं होती, इसकी जड़ें कहीं अधिक पुरानी हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदर्श वाक्य— “यतो धर्मस्ततो जयः” (जहां धर्म है, वहां विजय है) महाभारत से लिया गया है. न्याय हमारी सभ्यतागत समझ में धर्म का मूर्त रूप है, जो नैतिक आचरण, सामाजिक जिम्मेदारी और शक्ति के सही प्रयोग को शामिल करता है।”

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