
Bihar Vidhansabha Chunav से पहले Congress ने बिहार में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नाम से पदयात्रा शुरू की। यात्रा में कांग्रेस के ‘युवा तुर्क’ कन्हैया कुमार की सक्रियता ने सहयोगी राजद की परेशानी बढ़ा दी है। खबर है कि महागठबंंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
बिहार में सभी राजनीतिक दल आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी तैयारियों को धार देने में जुटे हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस ने भी ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नाम से पदयात्रा शुरू की है. यह यात्रा पश्चिमी चंपारण के भीतिहरवा गांधी आश्रम से शुरू हुई. और विभिन्न जिलों से होकर 14 अप्रैल को राजधानी पटना पहुंचेगी. यह यात्रा यूथ कांग्रेस और NSUI द्वारा निकाली जा रही है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु (Krishna Allavaru) और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) इस यात्रा में शामिल हुए. लेकिन इस पदयात्रा के फोकस में रहे NSUI के राष्ट्रीय प्रभारी कन्हैया कुमार. (Kanhaiya Kumar) जिनकी 6 साल बाद बिहार की राजनीति में फिर से वापसी हो रही है।
हालांकि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस ने इस यात्रा के लिए कोई चेहरा घोषित नहीं किया है. लेकिन कन्हैया के तेवर बता रहे थे कि इस पदयात्रा के ‘दूल्हा’ वही रहेंगे. इस अवसर पर उन्होंने अपने अंदाज में बिहार सरकार पर जमकर निशाना साधा. पलायन, बेरोजगारी और सांप्रदायकिता के मुद्दे पर सरकार को घेरा. कन्हैया कुमार अपनी इस यात्रा से एनडीए की मुश्किले कितनी बढ़ा पाएंगे ये तो आगे पता चलेगा. लेकिन खबर है कि बिहार की राजनीति में उनकी सक्रियता ने सहयोगी दल राजद और खासतौर पर तेजस्वी यादव को असहज कर दिया है।
* कांग्रेस की अतिसक्रियता राजद को रास नहीं आ रही
निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री और महागठबंधन में कांग्रेस की अतिरिक्त सक्रियता. इस वक्त बिहार की राजनीति में ये दो कीवर्ड्स सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. जबसे कृष्णा अल्लावरु को कांग्रेस की कमान मिली है पार्टी मिशन मोड में नजर आ रही है. इस साल राहुल गांधी दो बार बिहार की यात्रा कर चुके हैं. इसके साथ ही कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को भी एक्टिव कर दिया है. राज्य का प्रभार मिलने के बाद से अब तक कृष्णा अल्लावरु के आधिकारिक तौर पर लालू यादव से मुलाकात नहीं की है. ना ही तेजस्वी यादव से. यही नहीं उनके बयान भी महागठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी दल को असहज करने वाले रहे हैं. 1 मार्च को अल्लावरु ने कहा,
* कांग्रेस इस बार जनता की A टीम बनकर चुनाव लड़ना चाहती है. किसी की B टीम नहीं. हमारा मकसद मजबूती से चुनाव लड़ना है. और पार्टी को मजबूत करना है।
कृष्णा अल्लावरु राहुल गांधी के भरोसेमंद माने जाते हैं. ऐसे में उनके एक्शन का असर महागठबंधन की सेहत पर पड़ना तय है. दरअसल पिछले 25-30 सालों से कांग्रेस बिहार में राजद के कंधे पर सियासी सवारी करती आई है. गठबंधन में वहीं होता आया है जिसमें लालू यादव की रजामंदी होती है. कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद के चयन में भी उनकी भूमिका बताई जाती है. प्रसाद लालू यादव के पुराने राजदार रहे हैं. उनके जरिए लालू यादव कांग्रेस को डिक्टेट करते रहे हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के चाहने के बावजूद पप्पू यादव की कांग्रेस में सीधी एंट्री इसलिए नहीं हो पाई है क्योंकि अखिलेश प्रसाद अडंगा लगाते रहे हैं। अब कांग्रेस लालू यादव के पॉकेट की पार्टी वाली छवि से मुक्ति चाहती है। साथ ही उनकी नजर अपने पुराने वोट बैंक को रिवाइव करने की है. इसी कवायद के तहत पार्टी ने कन्हैया कुमार को आगे किया है. अब कन्हैया की इस यात्रा से भी अखिलेश प्रसाद असहज नजर आ रहे हैं. ‘बिहार तक’ के रिपोर्टर ने जब उनसे कन्हैया के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि कन्हैया इस यात्रा का चेहरा नहीं हैं. ये यात्रा कांग्रेस पार्टी की यात्रा है. उनसे अगला सवाल हुआ कि क्या कन्हैया के आने से युवाओं को पार्टी से जोड़ने में मदद मिलेगी। कांग्रेस के अंदर भी असंतोष
कांग्रेस की पदयात्रा में कन्हैया कुमार ज्यादा मुखर नज़र आ रहे हैं. जिसके साइड इफेक्ट पार्टी और महागठबंधन के अंदर स्पष्ट तौर पर दिखने लगे हैं. अल्लावरु के एक्टिव होते ही अखिलेश प्रसाद शांत हो गए हैं. वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं, कांग्रेस का एक खेमा लालू प्रसाद यादव से दूरी बनाना चाहता है. लेकिन लोगों को ये पता है कि कांग्रेस अलग होकर भी राजद के साथ ही रहेगी. कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, कन्हैया कुमार, पप्पू यादव अभी एक कैंप में हैं. अखिलेश सिंह और राजद से रिश्ता रखने वाले लोग दूसरे कैंप में हैं।
कांग्रेस के बिहार में एक्टिव होने के बाद तेजस्वी यादव ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से अपनी नाराजगी जाहिर की है. दैनिक भास्कर ने सूत्रों के हवाले से बताया कि उनकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से सीधी बात हुई है. जिसके बाद राहुल गांधी ने 12 मार्च को होने वाली बिहार कांग्रेस की समीक्षा बैठक को भी टाल दिया था। कन्हैया से राजद की असहजता नई नहीं है. कन्हैया ने CPI के टिकट पर बेगूसराय से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में राजद ने उनके खिलाफ तनवीर हसन को मैदान में उतारा था. इसके बाद कन्हैया ने कांग्रेस जॉइन कर लिया. लेकिन बिहार में उनकी सक्रियता न के बराबर रही. बीच-बीच में उनके साथ मंच शेयर करने को लेकर तेजस्वी की असहजता सुर्खियों में रहीं. मई 2023 में प्रजापति सम्मलेन में कन्हैया के शामिल होने पर मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए तेजस्वी ने कार्यक्रम से दूरी बना ली थी. सियासी जानकारों की माने तो लालू यादव कभी भी कन्हैया को बिहार की सियासत में नहीं देखना चाहते. लालू यादव इनको तेजस्वी के लिए चुनौती मानते हैं।
* क्या टूट जाएगा गठबंधन?
कांग्रेस ने जिस तरह से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को एक्टिव किया है. इससे राजद के साथ उनके गठबंधन को लेकर सवाल उठने लगे हैं. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस का ये दांव पॉलिटिकल बारगेनिंग के लिए है. पार्टी अभी अकेले चुनाव में जाने का रिस्क नहीं लेगी. दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव के नतीजों ने राजद के कॉन्फिडेंस को भी झटका दिया है. ऐसे में कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ना उनके लिए भी आसान नहीं होगा. कांग्रेस लंबे समय से राजद की सहयोगी रही है. वहीं लेफ्ट पार्टियों को राजद स्वाभाविक सहयोगी के तौर पर नहीं देखती. क्योंकि राजद और उनका जनाधार कमोबेश एक ही है. ऐसे में उनको बैलैंस करने के लिए भी राजद को कांग्रेस की जरूरत पड़ेगी।
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