
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले के हुलास गाँव में हुआ था। एक पारंपरिक बिहारी परिवार में पली-बढ़ी शारदा को बचपन से ही लोक संगीत का माहौल मिला। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से संगीत में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की, जिससे उनकी संगीत की समझ और भी गहरी हो गई।
संगीत यात्रा और प्रसिद्धि की ओर कदम
शारदा सिन्हा ने 1970 के दशक के अंत में अपने संगीत करियर की शुरुआत की। 1980 में उनके एल्बम “सजना के भाभी” और छठ पूजा गीत “पनिया के जहाज से पताल पर” ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई। उनके छठ गीत बिहार के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार छठ पूजा के साथ जुड़ गए और उन्हें इस त्योहार की आवाज बना दिया।
भारतीय लोक संगीत में अनूठा योगदान
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही संगीत को अपनी आवाज़ से सजाया और इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने अपने संगीत में पारंपरिक वाद्ययंत्रों जैसे ढोलक, हारमोनियम और तबला का उपयोग किया, जिससे उनके गीतों में ग्रामीण बिहार की झलक मिलती है।
प्रमुख उपलब्धियाँ
शारदा सिन्हा को उनके संगीत योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं:
- पद्म श्री (1991): भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए।
- पद्म भूषण (2018): भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
हिट गाने
शारदा सिन्हा के कई गाने बहुत लोकप्रिय हुए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- “कहे तोसे सजना” (फिल्म: मैंने प्यार किया)
- “तार बिजली” (फिल्म: गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2)
- “कौन सी नगरीया” (फिल्म: चारफुटिया छोकरे)
- “हो दिनानाथ” (छठ पूजा गीत)
- “केलवा के पात पर उगेलन सूरज मल झाके झुके” (छठ पूजा गीत)
विरासत और प्रभाव
शारदा सिन्हा का निधन 5 नवम्बर 2024 में हुआ। उनके निधन से भारतीय लोक संगीत जगत में एक बड़ी क्षति हुई है। उनकी आवाज़ और गीतों ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में लोक संगीत को एक नई पहचान दी है। उनकी संगीत यात्रा और उनके योगदान ने उन्हें भारतीय लोक संगीत की एक अमूल्य धरोहर बना दिया है। उनकी आवाज़ हमेशा जीवित रहेगी और उनके गीत लोगों के दिलों में बसे रहेंगे।
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