
युवाओं की नज़र में यह हिंदुस्तान की सबसे दुखांत और बहुचर्चित प्रेम कहानियों में से एक है. सोशल मीडिया पर लिखी टिप्पणियां इस बात की अनेकों गवाह हैं।
कौन सा गुनाह ? कैसा गुनाह ?
किसी से जिंदगी भर स्नेह रखने, प्रेम करने का गुनाह…
स्नेह और प्रेम जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगे तो उसका त्याग करने का गुनाह…
है ना अजीब बात!
पर यही तो किया चंदर ने अपनी सुधा के साथ!
पुस्तक का शीर्षक: गुनाहों का देवता
लेखक: धर्मवीर भारती
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ
संक्षेप में: धर्मवीर भारती के इस उपन्यास का प्रकाशन और इसकी प्रतिकृति सम्मोहन हिन्दी साहित्य-जगत की एक बड़ी उपलब्धि बन गई है। वास्तव में, यह उपन्यास हमारे समय में भारतीय समुद्र तट की सबसे अधिक बिकने वाली लोकप्रिय धार्मिक कथाओं में प्रथम पंक्ति में है। गुनाहो का देवता मध्यम वर्गीय भारतीय समाज के एक साधारण परिवार की कहानी है। कहानी तीन मुख्य पात्रों के सदस्य गिर ही घूमते हैं। ये है सुधा, चंदर और पम्मी. प्रेम, उपहार और समाज के बंधनो की कहानी है गुलाबो का देवता। सामान्य लिखित भाषा में लिखी गई यह पुस्तक समाज का दर्पण दिखाई देती है। लेखक ने तीन सरल दृष्टान्तों की रचनाएँ की हैं जिनमें पात्रों का एक प्रयोग सा महसूस होता है।
कहानियाँ काफी सरल हैं। चंदर एक गरीब परिवार से हैं और डॉ. शुक्ला उसे अपना लेते हैं। शुक्ला जी की लड़की हैं सुधा। चन्द्र का शुक्ला जी के घर बे रोक टोक आना जाना रहता है। सुधा और उनके बीच काफी हंसी ढिंढोली बाजार स्थित हैं। चंदर अपनी रिसर्च में व्यस्त रहते हैं और बीच-बीच में डॉ. शुक के संग उनके कार्यक्रम मैं जाते हैं। शुक्ला जी ने चंद्र की साझीदारी को अपने सिर पर ले लिया और उनके मार्ग दर्शन करते रहे।
किताब काफी मजेदार है और इसे लिखने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए।
“कोई प्रेमी हैं, या कोई दार्शनिक हैं, ठाकुर देखा?”
“नहीं यार, दोनों से निकृष्ट कोटि के जीव हैं – ये कवि हैं।” उदाहरण के तौर पर जानिए मैं. ये हैं दिवंगत बिसरिया. ऍम ए में पढ़े हैं. आओ ये मिलाओ तुमसे!”
बिनती के परिवार का वर्णन देखें:
“और वह भीतर के पर्यटक बिनती के पितरों के दिव्य दर्शन प्राप्त करता है। वे एक पलंग पर बैठे थे, परन्तु वह अपने उदर के लिए नकाफी था। वे चित्त पढ़े थे और सांस लेते थे तो पुराणों की उस कथा का प्रदर्शन करते हुए धीरे-धीरे पृथ्वी का गोला वाराह के मुख पर कैसे ऊपर उठाया जाएगा। सिर पर छोटे-छोटे बाल और कमर में एक अंगोछे के अलावा सारा शरीर दिगंबर। सुबह शायद गंगा नहाकर आए थे क्योंकि पेट तक में चंदन, रोली लगी थी।
सुधा की शादी से हमेशा के लिए समुद्र तट पर ‘लाइक’ किया जाता है। शायद इसी वजह से उसने सुधा को अपना नहीं पाया। जब डॉ. शुक्ला द्वारा सुधा की शादी तय की गई तो चंद्र को ही सुधा से हां कहने की जिम्मेदारी मिली।
हाय री वीडियो!
जो सुधाचंद्र को मन ही मन इतना चाहता था, वही किसी एक तिहाई से उनका रिश्ता तय हो गया।
सुधा की शादी की रश्में तो हो जाती हैं लेकिन सुख कभी नहीं आता।
सभी अच्छी कहानियो का अंत जोड़ी होती है और जब कहानी पे आधारित हो तो कहानी अंत तो और जरूरी हो जाती है। गुनाहों के देवता मैं भी कुछ ऐसे ही हैं। अब जीवन में मैं कभी-कभी कहता हूं कि प्रेम प्रसंग जहां मैं पहुंचता हूं, वहां अधिकतर असफल हो जाते हैं और असफलता के प्रसंग ही पढ़ते हैं, चमकते हैं। जब सब कुछ अच्छा हो जाए तो फिर पढ़ें मुझे क्या आनंद आएगा? लगभग निश्चित रूप से निश्चित लेखक को इस कहानी को प्रतिलिपि अंत में पढ़ें।
खैर ही कहानी मैं उन सब बातों का जिक्र करता हूं जो साधारणतया हम हिंदी साहित्य में शामिल नहीं हैं, लेकिन उस समय के समाज का आईना हैं गुनाहों का देवता।
सभी कलाकार आम इंसान जैसे हैं, सभी मैं कमियाँ हैं। डॉ. शुक्ला वैसे तो किसी के यहां भी खाना खा लेते हैं लेकिन घर पे चकला चुहला और आडंबरो का पालन करते रहते हैं। सुधा का किरदार बिल्कुल एक भोली भाली लड़की का है जिसमें उनके पिता की आज्ञा का पालन करने के अलावा दूसरा कोई किरदार नहीं है।
कहानी का अंत मन को काफी झुंझलाता है। हम पढ़ना चाहते हैं उन नावों को जो अलग-अलग होती हैं आशा के विपरीत हो,चाहते हैं के लेखक हमें चकित करते हैं लेकिन मन में भी कहीं एक आशा की किरणें होती हैं शायद अंत में अच्छी हो। खैर, अंत कैसा भी क्यों न हो, मासूम को पसंद तो नहीं आ सकता लेकिन इस कहानी का अंत कुछ और ही है।
मेरे जैसे ने कहा था कि एक महान लेखक की पहचान उनके द्वारा जीते गए पुरस्कारों से नहीं होती, अगर उनकी किताब हर एक रेलवे स्टेशन पे मिले तो समझो की। पाठकों का मन जीत लिया जाता है। अभी तक तो मुझे ऐसा कोई स्टेशन नहीं मिला, जहां मैंने किताब यह नहीं देखी हो।
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