
हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है. यह व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधने का भी विधान है. इस व्रत को करने से लोगों को अनंत सुख की प्राप्ति होती है और पापों के नाश के साथ मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है. अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में खुशहाली का वातावरण बनाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों ने भी इस व्रत को करके अपने खोए हुए राज्य को वापस पाया था. अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत सूत्र बांधना बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह सूत्र कच्चे सूत का होता है.
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि | Anant Chaturdashi Puja Vidhi
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर उसे साफ वस्त्र पहनाया जाता है. भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और रोली आदि अर्पित करें. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और खीर, खोआ से बनी मिठाई चढ़ाएं. भगवान विष्णु की मूर्ति पर अनंत सूत्र चढ़ाएं, जिसे पूजा के बाद अपने दाहिने हाथ पर बांधा जाता है. अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा जरूर सुनें, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा | Anant Chaturdashi Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर व और अद्भुत रूप से किया गया. उस मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति होती थी. इससे दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे. द्रौपदी ने यह देखकर उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है. इस कटुवचन से दुर्योधन बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को 12 वर्ष वनवास दे दिया.
भगवान कृष्ण ने सुनाई थी कथा
वन में रहते उन्हें अनेकों कष्टों को सहना पड़ा. एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए. युधिष्ठिर ने उन्हें सब हाल बताया और इस विपदा से निकलने का मार्ग भी पूछा. इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चर्तुदशी का व्रत करने को कहा और कहा कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी मिल जाएगा. इस वार्तालाप के बाद श्रीकृष्णजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं.
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था उसकी एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था. जब कन्या बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से कर दिया. विवाह पश्चात कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम की ओर चल दिए. रास्ते में रात हो गई जिससे वह नदी के किनारे आराम करने लगे. सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनंत व्रत का महत्व बता दिया. सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया. फिर वह पति के पास आ गई.
अनंत भगवान का अपमान
कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी. कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से अप्रसन्न हो गए. उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया. इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ जिसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई. सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना बताया. इसके बाद पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए ऋषि अनंत भगवान की खोज में वन की ओर चले गए. वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पडे़ और बेहोश हो गए.
महाभारत युद्ध में पाण्डवों को मिली थी जीत
भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और विपत्तियां आई. लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं तुमसे अब प्रसन्न हूं. अपने आश्रम में जाओ और 14 वर्षों तक विधि विधान से मेरा यह व्रत करो. इससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया और उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी हुई. श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया. जिससे पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली.
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