
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का नाम एक ऐसे नेता के रूप में लिया जाता है जिन्होंने पिछड़े वर्गों, दलितों और अल्पसंख्यकों की राजनीति को मुख्यधारा में लाकर पूरे समीकरण को बदल दिया। 11 जून 1948 को गोपालगंज जिले में जन्मे लालू ने पटना विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति की शुरुआत की और 1974 के जयप्रकाश नारायण आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। 1977 में वे पहली बार लोकसभा पहुंचे और जल्द ही समाजवादी राजनीति के प्रमुख चेहरा बन गए।
1990 में लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और “सामाजिक न्याय” का नारा देकर पिछड़े और गरीब वर्गों को सत्ता में आवाज़ दी। इस दौर में उन्हें “गरीबों का मसीहा” और “सामाजिक न्याय का नायक” कहा गया। लेकिन इसी दौरान राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ने से बिहार को “जंगलराज” के नाम से भी जाना जाने लगा। 1997 में चारा घोटाले के सामने आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता की बागडोर सौंप दी। इसी साल उन्होंने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठन किया।
2000 तक RJD सत्ता में बनी रही लेकिन 2005 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को बड़ी हार झेलनी पड़ी और नितीश कुमार ने सत्ता संभाल ली। हालांकि लालू यादव ने केंद्र की राजनीति में अपनी जगह बनाई और 2004 से 2009 तक रेल मंत्री रहते हुए रेलवे को मुनाफे में लाने के लिए सराहना भी हासिल की। मगर बिहार की सत्ता में उनकी वापसी नहीं हो सकी।
2015 के विधानसभा चुनावों में लालू यादव ने नितीश कुमार और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और शानदार जीत दर्ज की। इस चुनाव में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन 2017 में नितीश कुमार ने अचानक बीजेपी का साथ थाम लिया और लालू यादव फिर विपक्ष में चले गए। इस दौरान लालू यादव की तबीयत बिगड़ी और वे जेल की सजा काटते रहे। पार्टी की बागडोर धीरे-धीरे उनके बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में आ गई।
2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD ने जोरदार प्रदर्शन किया और 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, हालांकि सरकार बनाने से चूक गई। 2022 में JDU, RJD, कांग्रेस और वामदलों के साथ मिलकर महागठबंधन सरकार बनी और तेजस्वी उपमुख्यमंत्री बने। इसी दौरान बिहार में जातिगत सर्वेक्षण पूरा हुआ जिसने RJD को राजनीतिक मजबूती दी। लेकिन 2024 में नितीश कुमार ने फिर से बीजेपी का साथ ले लिया और RJD विपक्ष में लौट आई।
आज RJD का भविष्य तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर टिका है। पार्टी के पास अब भी मजबूत यादव-मुस्लिम (MY) वोट बैंक है, लेकिन बिहार के युवा और नए मतदाता अब रोजगार, विकास और शिक्षा की राजनीति की अपेक्षा करते हैं। लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत और सामाजिक न्याय की राजनीति RJD की ताकत है, लेकिन भ्रष्टाचार, परिवारवाद और “जंगलराज” की छवि इसकी सबसे बड़ी चुनौती।
जनविचार की दृष्टि में RJD का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तेजस्वी यादव जातीय समीकरण से आगे बढ़कर विकास और रोजगार की राजनीति कर पाते हैं या नहीं। अगर वे सफल होते हैं, तो आने वाले 2025 विधानसभा चुनाव में RJD सत्ता की दौड़ में सबसे मजबूत दावेदार हो सकती है।
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