
बिहार की राजनीति में एक नाम हमेशा सुर्खियों में रहता है – नितीश कुमार। कभी जनता उन्हें सुशासन बाबू कहकर सराहती है, तो कभी उनके गठबंधन बदलने के फैसलों पर उन्हें पलटू राम कहकर आलोचना करती है। जनविचार की इस पड़ताल में हम देखेंगे कि आखिर कैसे नितीश कुमार ने बिहार की राजनीति को तीन दशकों से अधिक समय तक प्रभावित किया और क्या वाकई उनका “सुशासन मॉडल” आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 2005 में था।
बचपन से राजनीति तक
1 मार्च 1951 को बख्तियारपुर, पटना में जन्मे नितीश कुमार ने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति की ओर खींचा। 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़कर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। 1985 में पहली बार विधायक बने और जल्द ही राष्ट्रीय राजनीति में भी जगह बनाई।
सुशासन की शुरुआत (2005–2010)
2005 में जब नितीश कुमार सत्ता में आए तो बिहार अंधेरे और अपराध के लिए बदनाम था। नितीश ने बिजली, सड़क और कानून-व्यवस्था पर काम कर अपनी अलग पहचान बनाई। मुख्यमंत्री साइकिल योजना और पंचायत चुनावों में महिला आरक्षण ने उन्हें “प्रगतिशील नेता” की छवि दी। यही वह दौर था जब “सुशासन बाबू” का नाम प्रचलित हुआ।
गठबंधन की राजनीति और शराबबंदी (2010–2017)
2010 के बाद नितीश कुमार ने अपने राजनीतिक फैसलों से कई बार सबको चौंकाया। 2013 में नरेंद्र मोदी के नाम पर उन्होंने BJP से नाता तोड़ा और 2015 में लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता में लौटे। 2016 में लागू की गई पूर्ण शराबबंदी ने उन्हें महिलाओं का अपार समर्थन दिलाया। लेकिन 2017 में एक बार फिर उन्होंने पाला बदलकर BJP के साथ हाथ मिला लिया। इसी वजह से उन्हें पलटू राम की संज्ञा दी जाने लगी।
युवा, शिक्षा और पर्यावरण (2017–2020)
इस अवधि में नितीश कुमार ने युवाओं और शिक्षा को केंद्र में रखा। छात्र क्रेडिट कार्ड योजना, निश्चय योजना और कॉलेजों में मुफ्त वाई-फाई ने छात्रों को सीधा लाभ पहुँचाया। वहीं जल-जीवन-हरियाली अभियान ने पर्यावरण को राजनीति के एजेंडे में लाने का काम किया। लेकिन इन पहलों की चमक के बीच गठबंधन बदलने की राजनीति ही ज्यादा चर्चा में रही
कोरोना और संकट की राजनीति (2020–2022)
COVID-19 महामारी ने नितीश सरकार की असली परीक्षा ली। प्रवासी मजदूरों का संकट, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और बेरोजगारी की समस्या ने सरकार की साख को चुनौती दी। हालांकि मुफ्त राशन और कुछ राहत योजनाएँ चलाई गईं, लेकिन जनता का भरोसा डगमगाया।
जातिगत सर्वेक्षण और वापसी (2023–2024)
2023 में नितीश कुमार ने जातिगत सर्वेक्षण का ऐतिहासिक कदम उठाया। इसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया और विपक्षी खेमे में भी उन्हें अहम नेता के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन 2024 की शुरुआत में उन्होंने एक और पलटी मारकर BJP के साथ मिलकर 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
जनविचार का सवाल: सुशासन बाबू या पलटू राम?
नितीश कुमार की राजनीति उपलब्धियों और विरोधाभासों से भरी है।
✅ उपलब्धियाँ: सड़क-बिजली सुधार, महिला आरक्षण, छात्र योजनाएँ, शराबबंदी, पर्यावरण अभियान।
❌ आलोचना: बार-बार बदलते गठबंधन, स्थायी विज़न पर सवाल।
आज सवाल यह है कि क्या नितीश कुमार बिहार को स्थायी विकास मॉडल दे पाए हैं या उनकी पहचान केवल गठबंधन की राजनीति तक सीमित रह जाएगी?
निष्कर्ष
जनविचार की नज़र में नितीश कुमार का सफर बिहार की राजनीति का आईना है – जहाँ विकास और सुधार की कहानियाँ हैं, वहीं सत्ता में बने रहने के लिए किए गए समझौते भी। वह सुशासन बाबू हैं या पलटू राम, यह फैसला आने वाले वक्त और जनता का होगा। लेकिन इतना तय है कि नितीश कुमार को अनदेखा कर बिहार की राजनीति को समझा नहीं जा सकता।
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