
बिहार में 2020 के बाद हुए उपचुनावों में महागठबंधन को नुकसान हुआ जबकि एनडीए को फायदा हुआ। आगामी चुनाव में दोनों गठबंधनों के सामने सीटें बचाने की चुनौती है। रूपौली में निर्दलीय की जीत हुई बोचहा सीट पर पेंच है और रामगढ़ में समीकरण बदल गया है। बेलागंज में परिवारवाद के कारण राजद को हार का सामना करना पड़ा।
2020 के बाद बिहार में विधानसभा की 12 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें महागठबंधन को सबसे अधिक नुकसान हुआ। उसे केवल एक सीट की आमद हुई। जीती हुई चार सीटें हाथ से निकल गईं। एनडीए को एक सीट का नुकसान हुआ। चार का लाभ मिला। इस बार के विधानसभा चुनाव में दोनों गठबंधनों के सामने इन सीटों को बचाने की चुनौती है। महागठबंधन की चुनौती यह है कि किस तरह इन सीटों पर 2020 के परिणाम को दोहराया जाए। वैसी ही चुनौती एनडीए के सामने है- कैसे उपचुनाव की बढ़त बनी रहे। उपचुनाव के दौरान एक निर्दलीय शंकर सिंह भी मैदान में आ गए। वे रूपौली से विधायक बन गए। 2020 में रूपौली में जदयू की बीमा भारती जीती थीं। लोकसभा चुनाव के समय राजद में शामिल हो जाने के कारण उनकी विधायकी चली गई।
शंकर सिंह ने उपचुनाव में राजद और जदयू-दोनों को हराया। संभावना यह जाहिर की जा रही है कि वह इस बार किसी दल के उम्मीदवार की हैसियत से मैदान में आएं। एक पेंच मुजफ्फरपुर जिले की बोचहा विधानसभा सीट को लेकर भी है। 2020 में विकासशील इंसान पार्टी की जीत हुई थी।
निर्वाचित विधायक मुसाफिर पासवान भाजपा में शामिल हो गए। उनका निधन हो गया। उपचुनाव में उनके पुत्र अमर पासवान राजद टिकट पर चुनाव जीत गए। संकट यह है कि वीआईपी अब महागठबंधन में है। 2020 के परिणाम के आधार पर सीटों का बंटवारा हो तो यह वीआईपी के हिस्से में आएगी।
उपचुनाव के परिणाम के आधार पर यह राजद की सीट है। बीच का रास्ता यह निकाला जा सकता है कि उम्मीदवार अमर पासवान ही रहें। उन्हें राजद के बदले वीआईपी का उम्मीदवार बना दिया जाए। रामगढ़ विधानसभा सीट के उपचुनाव ने वोटों का समीकरण बदल दिया था। राजद की यह परम्परागत सीट भाजपा के पास चली गई। बुरी बात यह कि उपचुनाव में राजद उम्मीदवार तीसरे नम्बर पर चले गए। दूसरे नम्बर पर बसपा के सतीश कुमार सिंह रहे। राजद को सीट बचाने का नुस्खा यह बताया जा रहा है कि क्यों न सतीश कुमार सिंह को ही उम्मीदवार बना दिया जाए।
उपचुनाव में भाजपा की जीत 1284 के मामूली वोटों के अंतर से हुई थी। बेलागंंज उपचुनाव में राजद को परिवारवाद से उत्पनन नाराजगी का सामना करना पड़ा था। विधायक सुरेंद्र यादव के लोकसभा में जाने के कारण रिक्ति बनी थी। उनके पुत्र विश्वनाथ कुमार सिंह राजद उम्मीदवार बने थे। 22 हजार से अधिक वोटों के अंतर से उनकी हार हुई। 2025 के विधानसभा चुनाव की कार्य योजना में उम्मीदवार बदलने के विचार को शामिल किया गया है। तरारी में भाकपा माले की उपचुनाव में हार हो गई। विधायक सुदामा प्रसाद आरा से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। उपचुनाव में माले ने राजू यादव को उम्मीदवार बनाया। भाजपा के विशाल प्रशांत जीत गए। भाजपा तो उम्मीदवार नहीं बदलेगी। भाकपा माले में उम्मीदवार परिवर्तन पर विचार हो सकता है।
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