
CBSE बोर्ड ने 10वीं और 12वीं का रिजल्ट घोषित कर दिया। इसमें पटना रीजन का रिजल्ट पिछले साल से करीब एक फीसदी कम रहा। यह गिरावट कोरोना काल के बाद से लगातार जारी है।
2022 के आंकड़ों को देखे तो 10वीं में 6 फीसदी और 12वीं में 9 फीसदी की गिरावट है। इस साल यानी 2025 के रिजल्ट के मुताबिक, देशभर के 17 रीजन में से पटना रीजन (बिहार-झारखंड) 10वीं में 13वें नंबर पर तो 12वीं में 14वें नंबर पर है। बिहार-झारखंड के स्टूडेंट्स में कोचिंग कल्चर का क्रेज तेजी से बढ़ा है। अधिकतर स्टूडेंट्स स्कूल से ज्यादा कोचिंग पर निर्भर हो गए हैं। वह जेईई या NEET की तैयारी करने के लिए दिनभर कोचिंग में रह रहे हैं। DAV बीएसईबी कॉलोनी के प्रिंसिपल अजय झा का मानना है कि छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट की बड़ी वजह डमी स्कूल और कोचिंग कल्चर का तेजी से फैलाव है। उन्होंने बताया, ‘इस बार के एग्जाम में केस बेस्ड और कांप्लिमेंट बेस्ड सवाल पूछे गए थे, जो केवल रटकर या कोचिंग में सवाल हल करने से नहीं आता। ये समझ पर आधारित था। अब जो छात्र सिर्फ कोचिंग पर निर्भर थे, उन्हें तो पैटर्न का ही अंदाजा नहीं था।’. ‘डमी स्कूलों में छात्रों का एडमिशन तो होता है, लेकिन वे क्लास नहीं आते। पूरे साल कोचिंग करते हैं और सीधे बोर्ड देने पहुंचते हैं।’ ‘कोचिंग संस्थानों में फोकस सिर्फ सिलेबस खत्म करने और सवाल हल कराने पर होता है, न कि समझ विकसित करने पर। बोर्ड अब बच्चों की सोचने की क्षमता परख रहा है। ऐसे में डमी मॉडल अब पुराने समय की बात हो जानी चाहिए।’. सेंट कैरेंस हाईस्कूल, पटना की प्रिंसिपल मैरीकुट्टी थॉमस का कहना है, ‘कोरोना के समय ऑनलाइन क्लासेस और डिजिटल लर्निंग के चलते स्टूडेंट्स को लंबे समय तक मोबाइल का उपयोग करना पड़ा। यही आदत धीरे-धीरे सोशल मीडिया और गेम्स की ओर ले गई, जिससे पढ़ाई करना मुश्किल हो गया। अब वह मोबाइल के सहारे ही ज्यादा पढ़ाई कर रहे हैं।’. प्रिसिंपल थॉमस का कहना है, ‘कोविड के बाद बच्चों और कुछ पेरेंट्स में यह ट्रेंड दिखा है कि वो स्कूल भेजने से कतराते हैं। कई बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं और यूट्यूब पर कोर्स पढ़ने को सीरियसली लेते हैं। जबकि, स्कूल में आकर माहौल को समझना और टीचर्स के साथ कम्युनिकेट करना सीखते हैं। अनुशासन में रहना सीखते हैं। बच्चों और खासकर पेरेंट्स को ये बात समझनी चाहिए।’
वहीं, करियर काउंसलर राधिका तेवतिया का मानना है, ‘कोविड के बाद बच्चों की पढ़ाई में मोबाइल का दखल बढ़ा है। लंबे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई करने के कारण उनके अध्ययन की निरंतरता प्रभावित हुई है। आज परीक्षा में सफल होने के लिए कंसेप्ट क्लेरिटी, प्रैक्टिस और टाइम मैनेजमेंट जरूरी हो गया है। सिर्फ नंबर लाने की होड़ में कॉन्सेप्ट के क्लियर न होने की होड़ छात्रों को नुकसान पहुंचा रहा है।’ काउंसलर राधिका तेवतिया का कहना है, ‘कम नंबर आने के पीछे केवल छात्रों की मेहनत की कमी नहीं, बल्कि परीक्षा का बदलता पैटर्न और डिजिटल डिस्ट्रक्शन जैसे कई कारण हैं।’ अजय झा ने बताया, ‘हमारे स्कूल में साइंस और बायो की तरह ही अब आर्ट्स में भी एडमिशन बढ़ रहे हैं। अब बच्चे आर्ट्स को केवल कमजोर छात्रों का स्ट्रीम नहीं मानते, बल्कि इसमें भविष्य की संभावनाएं देख रहे हैं। आर्ट्स से सिविल सर्विसेज, सोशल साइंसेज, मीडिया, सोशल वर्क, लॉ और एडमिनिस्ट्रेशन जैसी असीमित संभावनाएं हैं। बच्चे अब समझने लगे हैं कि हर स्ट्रीम का अपना महत्व है।’
राधिका का सुझाव है कि जिन छात्रों के नंबर उम्मीद से कम आए हैं, वे सबसे पहले शांति से बैठकर अपनी स्थिति का मूल्यांकन करें। ‘पहले खुद से ईमानदारी से यह पूछे कि किस विषय में कमी रह गई और किस विषय में आपकी पकड़ मजबूत है। फिर अगला कदम सोच-समझकर उठाएं। करियर चुनते समय अपनी रुचि, योग्यता और लॉन्ग टर्म गोल को ध्यान में रखें। साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स – हर स्ट्रीम में आज अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरी है कि आप खुद को और अपने इंटरेस्ट को समझें।’
मैरीकुट्टी थॉमस ने बताया, आज बच्चों के लिए करियर का सही चुनाव करना पहले से अधिक जटिल हो गया है। हमारे यहां बच्चे जब विषयों का चयन करते हैं तो पहले बहुत रिसर्च करते हैं। हमारे शिक्षक उन्हें गाइड करते हैं कि कौन सा स्ट्रीम उनके लिए सही रहेगी।’ उनका कहना है कि यह सिर्फ नंबर की बात नहीं है, बल्कि बच्चों की रुचि, क्षमता और मानसिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना जरूरी है। उन्होंने बताया, ‘स्कूलों में हेल्थ एंड वेलनेस ट्रेनिंग, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट और पोस्टोरल काउंसलिंग जैसी व्यवस्थाएं होनी चाहिए, ताकि बच्चों का विकास हो सके।’
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