
बिहार म्यूजियम ने कई कलाकृतियों को अलंकृत किया है और यहाँ आपको ऐतिहासिक जानकारियां मिलेंगी। म्यूजियम ने भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को संजोये रखा है। बिहार म्यूजियम का आंतरिक बनावट वाकई काबिले तारीफ है। यहां की हर मूर्ति अपने गौरवशाली अतीत को परिभाषित करती है।
बिहार म्यूजियम में प्रदर्शित की गईं कलाकृतियों को संरक्षित करने का काम शुरू हो गया है। बारी-बारी से सभी प्रदर्शों की जांच की जा रही है। जहां खराबी पाई जा रही है, उसका संरक्षण किया जा रहा है। फिलहाल, मिथिला पेंटिंग की 101 प्रतियों का संरक्षण किया जा रहा है।
इसके बाद डेनियल प्रिंट और ऑर्कियोलॉजिकल कलेक्शन को संरक्षित किया जाएगा। म्यूजियम में करीब 30 से 40 हजार प्रदर्श रखे गए हैं, जिन्हें जांच के बाद संरक्षित किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस संरक्षण प्रक्रिया से इन कलाकृतियों की उम्र 500 साल तक बढ़ सकती है। म्यूजियम में 75 साल से भी ज्यादा पुराने पुरातात्विक अवशेष रखे गए हैं। पहले इन वस्तुओं को संरक्षण के लिए बाहर भेजना पड़ता था। अब म्यूजियम में ही नई और अत्याधुनिक लैब तैयार की गई है, जहां इन्हें संरक्षित किया जाएगा। बिहार म्यूजियम के महानिदेशक अंजनी कुमार सिंह ने बताया कि इस लैब में सिर्फ बिहार म्यूजियम ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य म्यूजियमों की धरोहरों का भी संरक्षित किया जाएगा।
म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि यह प्रयोशाला हमारी सांस्कृतिक धरोहर को और अधिक संजीदगी से संरक्षित करने में भूमिका निभाएगी। इसके माध्यम से धरोहरों की उम्र 500 साल तक बढ़ाने और उसे बेहतर तरीके से संरक्षित करने में मदद मिलेगी। छोटी खामियों की सूक्ष्म जांच होगी और उनमें सुधार किए जाएंगे।लैब के प्रमुख संरक्षक संजीव कुमार सिंह का कहना है कि यह दक्षिण भारत की तरह उच्चस्तरीय सुविधा देने वाली इकलौती और सबसे उन्नत प्रयोगशाला है। इस लैब के होने से कलाकृतियों को अब बाहर भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लैब में प्रशिक्षण व संरक्षण में उपयोग की जाने वाली हर चीजें इटली से मंगाई गई है, जिसे दिल्ली बेस कंपनी सीटीएस ने बनाई है।
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