*सरदार पटेल के वो फैसले जिसने भारत को किया एकजुट, नवाबों के मंसूबों पर फेरा पानी*

सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है. उन्होंने ही देसी रियासतों को भारत में शामिल करने की मुहिम छेड़ी थी और आखिरकार उन रियासतों का भारत में विलय कर ही दिया. इस दौरान उन्होंने न सिर्फ रियासतों के नवाबों के मंसूबों पर पानी फेरा बल्कि पाकिस्तान की भी चाल को नाकाम कर दिया। भारत अगर आज एकीकृत है तो इसका सबसे बड़ी श्रेय जाता है देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को. देश की आजादी से पहले से ही देसी रियासतों को भारत में शामिल करने की मुहिम में जुटे सरदार पटेल को आजादी के बाद कई रियासतों को लेकर कुछ कठोर फैसले भी करने पड़े. इन्हीं फैसलों के कारण आज भारत एकजुट है. सरदार पटेल की पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं कि कैसे सरदार पटेल ने अपने फैसलों से भारत को एकजुट किया? किस तरह से पाकिस्तान की चाल को नाकाम किया और नवाबों के मंसूबों पर पानी फेरा? अंग्रेजों ने फंसाया था पेंच

दरअसल, भारतीय स्वाधीनता संग्राम का सामना करने में असफल साबित हुए अंग्रेजों ने जब देश को आजाद करने का फैसला किया तब भी चाल चलने से बाज नहीं आए. पहले तो देश को धर्म के आधार पर दो हिस्सों में बांट दिया. फिर तत्कालीन देसी रियासतों को यह अधिकार दे दिया कि वे अपने मन से चाहें तो भारत में रहें और चाहें तो पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएं. वास्तव में तब की शासन व्यवस्था कुछ ऐसी थी कि देश पर शासन तो अंग्रेजों का था पर 562 से भी अधिक देसी रियासतें और रजवाड़ों का भी अस्तित्व था, जिनका शासन अंग्रेजों के अधीन राजा और नवाब चलाते थे. इन्हीं रियासतों और रजवाड़ों को मन मुताबिक देश चुनने का अधिकार देकर अंग्रेजों ने पेंच फंसा दिया था.

आजादी से पहले ही शुरू कर दिया था एकीकरण

गांधी जी की सलाह पर सरदार पटेल ने इसका रास्ता भी निकाल लिया था. आजादी से पहले ही 6 मई 1947 को उन्होंने रियासतों-रजवाड़ों को भारत में शामिल करने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था. उन्होंने ही इन रियासतों के उत्तराधिकारियों के लिए प्रिवी पर्सेज के माध्यम से लगातार मिलने वाली आर्थिक मदद का प्रस्ताव रखा था। रियासतों से उन्होंने कहा था कि देशभक्ति की भावना के साथ फैसला लें. साथ ही इन सबके लिए समय सीमा भी तय कर दी कि देश की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 तक भारत में शामिल हो जाएं। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर पर था असमंजस

अंतत: लाल किले पर जब तिरंगा फहराया गया तो भारत एकजुट होकर एक देश के रूप में सामने आया. हालांकि, जूनागढ़, जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद को लेकर पेंच फंस गया था. जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने घोषणा कर दी कि वह पाकिस्तान में शामिल होगा. हैदराबाद का नवाब भारत में शामिल न होने पर अड़ा था, जबकि जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह कोई फैसला ही नहीं ले पा रहे थे.

आसान नहीं था कार्रवाई करना

सरदार पटेल के लिए भी इन पर कार्रवाई करना आसान नहीं था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में राजा जरूर हिंदू थे पर बहुसंख्यक लोग मुसलमान थे. वहीं, जूनागढ़ और हैदराबाद में मुसलमान नवाबों का शासन होने के बावजूद अधिसंख्यक आबादी हिंदू थी. इसलिए फैसला सोच-समझकर करना था, जिससे किसी भी तरह से सांप्रदायिक तनाव न फैले. उधर पाकिस्तान जूनागढ़ और हैदराबाद के नवाबों को हवा दे रहा था. उसने 16 सितंबर 1947 को जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा भी कर दी थी. हैदराबाद पर किसी भी तरह की भारतीय कार्रवाई का विरोध कर रहा था। पाकिस्तान के हमले ने आसान की राह

हालांकि, पाकिस्तान का एक फैसला उसी के गले की फांस बन गया और सबसे पहले जम्मू-कश्मीर उसके हाथ से निकल गया. जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के लिए वहां के रहनुमा इतने उतावले थे कि काबायलियों के वेष में कश्मीर पर हमला कर दिया. इस पर राजा हरि सिंह को भारत की मदद लेनी पड़ी. यह सरदार पटेल के लिए एक अच्छा मौका साबित हुआ और 25 अक्तूबर 1947 को राजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की घोषणा कर दी. इस फैसले में कश्मीर के तब के बड़े नेता शेख अब्दुल्ला की सहमति भी थी।

भारतीय सेना को दिया हमले का आदेश

वहीं, 87 फीसदी से अधिक हिन्दू आबादी के बावजूद हैदराबाद का नवाब उस्मान अली खान भारत में विलय न करने पर अड़ा था. उसके उकसाने पर कासिम रिजवी नाम के एक व्यक्ति ने भाड़े की सेना बनाकर हैदराबाद की जनता पर अत्याचार शुरू कर दिया. यह देख सरदार पटेल से रहा नहीं गया और उन्होंने 13 सितंबर 1948 को भारतीय फौज को हैदराबाद पर हमले का आदेश दे दिया. पाकिस्तान विरोध ही जताता रह गया और ऑपरेशन पोलो के जरिए भारतीय सेना ने दो दिन में हैदराबाद को भारत का अभिन्न अंग बना दिया। जूनागढ़ से तोड़ा संपर्क और अपना बना लिया

उधर जूनागढ़ के मुद्दे पर सरदार पटेल ने पाकिस्तान से फिर से विचार करने के लिए कहा. पाकिस्तान के इनकार करने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ की तेल और कोयले की सप्लाई रोक दी. हवाई और डाक संपर्क तोड़ दिया. पूरी तरह से आर्थिक घेराबंदी कर दी. जूनागढ़ को भारत में मिलाने का समर्थन करने वाली जनता विद्रोह पर उतर आई. बाकायदा सेना बनाकर जूनागढ़ के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. सरदार पटेल ने विद्रोहियों के कब्जे वाले जूनागढ़ पर शासन के लिए उनकी अंतरिम सरकार को मान्यता दे दी।

इससे घबराकर नवाब पाकिस्तान भाग गया. जूनागढ़ और पाकिस्तान के बीच समुद्र पड़ता है. जूनागढ़ ने मदद भी मांगी पर पाकिस्तान कुछ नहीं कर पाया और नौ नवंबर 1947 को सरदार पटेल ने इस रियासत को भी भारत के नियंत्रण में ले लिया। ऐसे-ऐसे फैसले लेने वाले सरदार पटेल को 15 दिसंबर 1950 की भोर में तीन बजे दिल का दौरा पड़ा. असल जिंदगी का यह सरदार बेहोश हो गया. चार घंटे बाद थोड़ा होश आया और अंतत: 9:37 बजे हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं।

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