
मंगलवार के दिन से छठ महा व्रत पर्व की नहाए खाए के साथ ही शुरूआत हो गई है।
नहाए खाए के दिन छठ व्रति महिला पूरी तरह से सादा भोजन करती हैं छठ का प्रारंभ ही शुद्धिकरण से होता है जिसमें नहाए खाए के दिन से छठ व्रती महिलाएं शारीरिक के साथ-साथ आत्मिक शुद्धि के लिए भी चने की दाल और लौकी की सब्जी का सेवन करती हैं।
जिससे अगले 36 घंटे में निर्जला व्रत धारण करने में सहनशक्ति प्राप्त हो सके,वैसे भी यह इतना कठिन व्रत है कि अगले 36 घंटे में पानी भी पीना मनाही होता है।
वैसे भी व्रत के दौरान लगातार भूखे प्यासे रहने से शरीर में पानी की कमी होती है जो नहाए खाए के दिन लौकी या कद्दू खाने से से पानी की पूर्ति हो जाती है यही नहीं लौकी में विटामिन सी की प्रचुरता होने के कारण शरीर में किसी तरह का एसिड भी बनने का खतरा नहीं होता है, इसके बाद अगले दिन से छठव्रति मातायें घाट पर स्नान करके घर पर आकर गुड़ की खीर बनाती हैं उसका भी अलग वैधानिक कारण होता है।
कहा जाए तो छठ का पर्व फिजिकली मेंटली शरीर के फिटनेस के लिए तो होता ही है इससे अध्यात्म और कई बीमारियों से रोगों का बचाव भी हो जाता है।
इसीलिए छठ व्रत की महिमा अपरंपार मानी जाती है मंगलवार को मोहनिया में भी हजारों महिलाओं ने नहाए खाए के साथ लौकी भात का सेवन कर छठ व्रत की शुरुआत कर दी है! इसीलिए सनातन धर्म में कई व्रत का महत्व में हजारों साइंटिफिक कारण भी जुड़े हैं।
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