
सनातन धर्म और विज्ञान के बीच कई समानताएँ हैं, जो प्राचीन हिंदू ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बीच एक अद्वितीय संगम को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा की गई है जहाँ सनातन धर्म और विज्ञान एक-दूसरे से मेल खाते हैं, साथ ही कुछ तथ्यात्मक उदाहरण और उद्धरण भी दिए गए हैं:
ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmology)
- प्राचीन हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान: ऋग्वेद में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, अस्तित्व और विनाश के चक्रों का वर्णन है, जो आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ मेल खाता है। नासदीय सूक्त में ब्रह्मांड की उत्पत्ति को एक अद्वितीय अवस्था से बताया गया है, जो बिग बैंग सिद्धांत के समान है। ऋग्वेद में कहा गया है:
“नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमापरो यत्।” (ऋग्वेद 10.129.1) “तब न अस्तित्व था, न अनस्तित्व, न आकाश था, न परे का कुछ।”
- आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान: बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से उत्पन्न हुआ था. यह सिद्धांत बताता है कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और यह एक अद्वितीय बिंदु से शुरू हुआ था।
समय का चक्रीय स्वरूप (Cyclic Nature of Time)
- हिंदू समय चक्र: हिंदू धर्म में समय को युगों में विभाजित किया गया है, जो सृष्टि, स्थिति और प्रलय के चक्रों में चलता है। यह अवधारणा ब्रह्मांड के अनंत पुनर्जन्म को दर्शाती है। भगवद गीता में कहा गया है:
“अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे। रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके॥” (भगवद गीता 8.18) “सभी प्राणी अव्यक्त से उत्पन्न होते हैं और रात्रि के आगमन पर उसी अव्यक्त में लीन हो जाते हैं।”
- वैज्ञानिक समय चक्र: आधुनिक विज्ञान में भी समय के चक्रीय स्वरूप की अवधारणा को स्वीकार किया गया है, जैसे कि ब्रह्मांडीय पुनर्जन्म और ब्लैक होल सिद्धांत. वैज्ञानिक मानते हैं कि ब्रह्मांड का विस्तार और संकुचन एक चक्रीय प्रक्रिया हो सकती है।
चिकित्सा और शल्य चिकित्सा (Medicine and Surgery)
- प्राचीन भारतीय चिकित्सा: सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है, जिन्होंने 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में कई शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का वर्णन किया था। सुश्रुत संहिता में उन्होंने 300 से अधिक शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं और 120 से अधिक शल्य उपकरणों का वर्णन किया है.
“शल्य चिकित्सा में सुश्रुत का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने न केवल शल्य चिकित्सा के सिद्धांतों को स्थापित किया, बल्कि उनके उपकरण और विधियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।” – डॉ. आर.के. शर्मा, आयुर्वेद विशेषज्ञ
- आधुनिक चिकित्सा: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी कई प्रक्रियाएँ और सिद्धांत प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथों से मेल खाते हैं। प्लास्टिक सर्जरी और मोतियाबिंद की सर्जरी जैसी प्रक्रियाएँ सुश्रुत द्वारा वर्णित की गई थीं और आज भी उपयोग में हैं.
गणित और खगोल विज्ञान (Mathematics and Astronomy)
- प्राचीन गणितज्ञ: आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञों ने शून्य की अवधारणा, पाई का मान और खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आर्यभट्ट ने पाई का मान 3.1416 बताया था, जो आधुनिक गणना के बहुत करीब है.
“आर्यभट्ट का गणित और खगोल विज्ञान में योगदान अद्वितीय है। उन्होंने न केवल शून्य की अवधारणा को प्रस्तुत किया, बल्कि ग्रहों की गति और खगोल विज्ञान के सिद्धांतों को भी स्थापित किया।” – प्रो. एम.डी. श्रीवास्तव, गणितज्ञ
- आधुनिक गणित और खगोल विज्ञान: आधुनिक गणित और खगोल विज्ञान में भी इन प्राचीन सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है। शून्य की अवधारणा और ग्रहों की गति के सिद्धांत आज भी गणित और खगोल विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों में शामिल हैं.
विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम (Fusion of Science and Spirituality)
- सनातन धर्म: सनातन धर्म में विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। यह धर्म वैज्ञानिक खोजों और आध्यात्मिक ज्ञान के बीच संतुलन को प्रोत्साहित करता है। उपनिषदों में कहा गया है:
“सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।” (तैत्तिरीय उपनिषद 2.1) “ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनंत है।”
- आधुनिक दृष्टिकोण: आधुनिक विज्ञान भी अब यह मानने लगा है कि आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच एक गहरा संबंध है, जो मानवता के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था:
“विज्ञान बिना धर्म के लंगड़ा है, धर्म बिना विज्ञान के अंधा है।”
सनातन धर्म और विज्ञान दोनों ही मानवता को गहरे और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो हमें ब्रह्मांड और हमारे अस्तित्व के रहस्यों को समझने में मदद करते हैं।
Discover more from जन विचार
Subscribe to get the latest posts sent to your email.