
बिश्नोई समुदाय की स्थापना 15वीं सदी में गुरु जम्भेश्वर (जम्भोजी) ने की थी। राजस्थान के मरुधरा क्षेत्र में जन्मे जम्भोजी ने 29 नियमों का एक सेट तैयार किया, जिसे उनके अनुयायी ‘बिश्नोई’ के रूप में जानते हैं। यह नाम ‘बिस’ (20) और ‘नोई’ (9) से मिलकर बना है, जो इन 29 नियमों का प्रतीक है।
धार्मिक आस्था और नियम
बिश्नोई समुदाय के नियमों में मुख्यत: पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीवों की रक्षा, और अहिंसा के सिद्धांत शामिल हैं। इनके कुछ प्रमुख नियम हैं:
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हरे पेड़ को नहीं काटना।
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वन्यजीवों की रक्षा करना।
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जल का संचयन और संरक्षण करना।
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शाकाहारी रहना और मांस का सेवन न करना।
वन्यजीवों के प्रति समर्पण
बिश्नोई समुदाय वन्यजीवों, विशेषकर काले हिरण और चिंकारा की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। वे अपने खेतों में इन जानवरों के लिए पानी और खाना रखते हैं। बिश्नोईयों का मानना है कि काले हिरण गुरु जम्भेश्वर का अवतार है, जिससे यह उनकी धार्मिक और पारिस्थितिक मूल्यों का प्रतीक बन गया है।
पर्यावरण संरक्षण
बिश्नोईयों का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। 1730 में, राजस्थान के खेजड़ली गाँव में अमृता देवी और 363 अन्य बिश्नोईयों ने पेड़ों की कटाई के खिलाफ अपने जीवन की आहुति दी थी। इस घटना को ‘खेजड़ली नरसंहार’ के नाम से जाना जाता है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बिश्नोईयों की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन
बिश्नोई समुदाय का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन भी पर्यावरण और शांति पर आधारित है। उनके त्योहार और रीति-रिवाज भी पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों की रक्षा के सिद्धांतों को सम्मानित करते हैं।
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