
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा संघ का अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने का इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि आरएसएस 2025 में अपना शताब्दी वर्ष नहीं मनाएगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि आरएसएस 2025 में अपना शताब्दी वर्ष नहीं मनाएगा। मोहन भागवत ने कहा संघ का अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने का इरादा नहीं है। एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर भागवत ने यह भी कहा कि जब 1925 में नागपुर में आरएसएस का गठन हुआ था, तब पदाधिकारियों को कड़े विरोध, संसाधनों की कमी और लोगों को जोड़ने में कठिनाई का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि किसी भी हालात में स्वयंसेवकों को अपना काम करते रहना चाहिए।
भागवत ने कहा, ‘‘आरएसएस का शताब्दी वर्ष मनाने की कोई जरूरत नहीं है। संघ इसे संगठन का अहंकार बढ़ाने के लिए नहीं कर रहा है। संघ किसी संगठन के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाने और कुछ उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने नहीं आया है।’’ उन्होंने कहा कि आरएसएस समाज को बदलना चाहता है और मानता है कि समाज की जीत का आकलन धन सृजन से नहीं बल्कि धर्म से किया जाना चाहिए। भागवत ने कहा, ‘‘इस समाज की जीत अन्य समाज को सशक्त बनाएगी और (अंतत:) जगत को लाभ पहुंचाएगी। आरएसएस ऐसे लोगों को तैयार करना चाहता है जो इस तरह से समाज में सुधार लाने की कोशिश करें। उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने की जरूरत नहीं है।’’
कुछ लक्ष्य हासिल करने में 100 साल लगे यह चिंताजनक: भागवत —-
भागवत ने कहा कि यह चिंताजनक है कि आरएसएस को कुछ लक्ष्य हासिल करने में 100 साल लग गए। उन्होंने कहा कि 2000 वर्षों के सामाजिक पतन के खिलाफ लड़ाई के कारण बदलाव की गति धीमी हो गई। आरएसएस के सरसंघचालक ने कहा, ‘‘विदेशियों ने हमारे लोगों को पट्टी पढ़ा दी है। हमें यह भूलने की बुरी आदत है कि हम क्या हैं। हमारे लोगों के बीच एक मनोवैज्ञानिक अंतर है क्योंकि हम पर सदियों तक कई शासकों ने शासन किया।’’
भागवत ने कहा कि पिछले 1000-1500 वर्षों में देश ने समय-समय पर विदेशी आक्रमणों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया है, लेकिन अपनी ही गलतियों और गद्दारों के कारण देश बार-बार गुलामी के चक्र में फंसता गया। आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘इस बीमारी से निपटने की जरूरत है, नहीं तो यह होता रहेगा। आक्रमणकारियों को एक स्थायी संदेश देने के लिए हमें अपनी कुछ बुनियादी गलतियों का इलाज करना होगा और यही (आरएसएस संस्थापक) डॉ. हेडगेवार ने किया।’’
देश इस बारे में कम सोचता है कि हम कौन हैं: मोहन भागवत
भागवत ने कहा कि देश में इस बारे में ज्ञान की कमी है कि हम कौन हैं। उन्होंने कहा कि वर्षों की गुलामी ने दिमाग पर गहरा असर किया, जिसके कारण स्पष्ट रूप से बोलने और सोचने के जज्बे की कमी है। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, हमें समाज को एक ऐसे सूत्र में पिरोने की जरूरत है जो हम सभी को एकजुट करे। हमें अपनी पहचान स्पष्ट रूप से जाननी चाहिए और दुनिया को भी बतानी चाहिए। वह पहचान हिंदू है और हमें गर्व के साथ कहना चाहिए कि हम हिंदू हैं।’’
आरएसएस की यात्रा के बारे में भागवत ने कहा, ‘‘पहले आरएसएस स्वयंसेवकों को कड़े विरोध, संसाधनों की कमी और लोगों को जोड़ने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। इसकी तुलना में, संगठन के लिए अब स्थिति अनुकूल है। हालात कैसे भी हों आरएसएस स्वयंसेवकों को अपना काम करते रहना चाहिए।’’
क्या है संघ की योजना?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने अमर उजाला को बताया कि संघ कभी दिखावे के लिए कोई कार्य नहीं करता। वह सतत समाज निर्माण की अपनी भूमिका निभाता रहता है। शताब्दी वर्ष को लेकर भी संघ की योजना इसी दृष्टि से आगे बढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष पर कार्यक्रमों का स्वरूप क्या हो और इसको किस तरह मनाया जाए, इस पर अभी विचार-विमर्श चल रहा है। जल्द ही इसका अंतिम स्वरूप तय कर लिया जाएगा और इसके बाद इसकी सूचना दी जाएगी।
नरेंद्र ठाकुर ने बताया कि इसके पहले भी आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जन्मशती जैसे कुछ बड़े कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। लेकिन इनका स्वरूप बेहद शांतिपूर्ण तरीके से संगठन का विस्तार करना और समाज का निर्माण करना था। शताब्दी वर्ष पर जो भी कार्यक्रम बनाए जाएंगे, उनके मूल में भी यही भावना समाहित रहेगी।
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