
100 Years Of RSS: दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज (शनिवार) विजयादशमी उत्सव के साथ ही स्थापना दिवस भी मना रहा है. इसके साथ ही संघ अपने सौवें साल में प्रवेश कर चुका है. इस अवसर पर संघ मुख्यालय नागपुर में सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत का चर्चित विजयादशमी भाषण भी हुआ। देश और दुनिया भर का ध्यान खींचने वाले संघ के सौ साल के सफर के बारे में जानने की कोशिश हैं।
एक सामाजिक- सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी. इसलिए संघ को जानने के लिए किसी भी जागरूक शख्स को पहले इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के बारे में जानना जरूरी माना जाता है. अपने जीवनकाल में उन्हें‘डॉक्टरजी’ के नाम से पुकारा जाता था. समाज सेवा और देशभक्ति की भावना से भरकर उन्होंने 36 साल की आयु में संघ की स्थापना की थी. बचपन में उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर सीतावर्डी के दुर्ग से अंग्रेजों का यूनियन जैक उतारने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना डाली थी।
तीन बार प्रतिबंधों के बावजूद हमेशा बढ़ता ही रहा संघ..
डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने साल 1925 में विजयादशमी (27 सितंबर) के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. संघ की प्रतिनिधि सभा की मार्च 2024 में हुई बैठक के अनुसार, देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं. इन प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं. संघ की प्रेरणा और सहयोग से समाज के हर क्षेत्र में विभिन्न संगठन चल रहे हैं, जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं. संघ के विरोधियों ने इस पर 1948, 1975 और 1992 में तीन बार प्रतिबंध लगाया. लेकिन तीनों बा संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या करता है. यह किसी भी तरह से (पश्चिमी) धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है. इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत संबंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बिपीन चंद्र पाल जैसे हिन्दू विचारकों के दर्शन से है. स्वामी विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “हिन्दुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाने के लिए सही अर्थों में एक हिन्दू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो.”स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में तब्दील कर दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सबसे मूलभूत यानी बुनियादी ईकाई उसकी शाखाएं हैं. ये ‘स्व’ के भाव को एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं. दरअसल, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र करने और हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र कोंपरम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी. संघ की शाखा से निकले कई स्वयंसेवक देश में राजनीतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़े पदों पर पहुंचे, लेकिन संघ अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होने का दावा करता है।
संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की किताब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र के मुताबिक, भारत को हर क्षेत्र में महान बनाना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केवल एक ध्येय है. संघ एक सशक्त हिन्दू समाज के निर्माण के लिए सभी जाति के लोगों को एक करना चाहता है. संघ का साधारण सिद्धांत यह है कि संघ शाखा चलाने के सिवाय कुछ नहीं करेगा और उसका स्वयंसेवक कोई कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ेगा. इसलिए संघ अपनी स्थापना के बाद से ही महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सहित तमाम महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बना रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली ताकत राष्ट्र के लिए स्वयं प्रेरणा से कार्य करने वाले उनके कार्यकर्ता हैं, जिन्हें स्वयंसेवक कहा जाता है. समकालीन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे देश के नवनिर्माण की आशा के साथ संगठन की योजना से काम करने वाले ऐसे स्वयंसेवकों को संघ ‘देवदुर्लभ’ कार्यकर्ता बताता है. इन स्वयंसेवकों में से कई युवक अपना पूरा जीवन संघ के जरिए राष्ट्र के लिए समर्पित करते हैं. इन्हें प्रचारक कहा जाता है. इनका काम स्वयंसेवकों को आपस में जोड़े रखना और शीर्ष नेतृत्व की बातों को शाखा से जुड़े परिवारों तक पहुंचाना होना होता है।
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